
बिहार बंद के दौरान राहुल गांधी के नेतृत्व में निकले जुलूस में जब महागठबंधन की एकता का डंका बजना था, तब अचानक से ‘सुरक्षा नीति’ नाम का बैकग्राउंड म्यूजिक बज उठा — और कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार को रथ पर चढ़ने से रोक दिया गया। रथ चला, कैमरे चमके, नेता मुस्कराए… बस कन्हैया नीचे रह गए।
“रथ नहीं चढ़ा, पर सवाल जरूर उठे!”
जैसे ही कन्हैया कुमार रथ पर चढ़ने लगे, सुरक्षाकर्मी सामने आ गए — जैसे Netflix पर कोई क्लाइमेक्स सीन हो।
सुरक्षाकर्मी बोले: “भैया! सीट फुल है। अगली बार जल्दी आइए।”
कन्हैया को उतार दिया गया, और रथ आगे बढ़ गया — तेजस्वी, मुकेश सहनी, दीपांकर भट्टाचार्य जैसे साथी नेता ऊपर विराजमान थे।
सियासी गलियारों में गर्मी — क्या कांग्रेस में अंदरुनी दरार?
घटना के बाद दिल्ली से पटना तक सियासी गलियारों में एक ही सवाल — “क्या ये सिर्फ सुरक्षा कारण था या कांग्रेस में खिंच रही कोई इनविज़िबल लाइन?”
कुछ इसे ‘भीतरघात’ कह रहे हैं, तो कुछ कह रहे हैं —
“रथ पर चढ़ने के लिए भी RSVP करना पड़ता है अब!”
बयानबाज़ी का सूखा – कांग्रेस और कन्हैया चुप्पी साधे!
अब तक न कांग्रेस ने सफाई दी है, न कन्हैया ने कोई दिल की बात कही है। लेकिन मौन भी बहुत कुछ कह देता है।
राजनीति में चुप रहना कभी-कभी उतना ही ज़ोरदार बयान होता है, जितना माइक पकड़ कर बोलना।
बंद में दिखा विपक्षी जोश, पर अंदरूनी खटास भी दिखी?
बिहार बंद के दिन राज्यभर में विपक्षी दलों का प्रदर्शन जोशीला था — लेकिन इस रथ कांड ने महागठबंधन की “ऑनस्क्रीन यूनिटी” पर थोड़ा धुंधला पानी छिड़क दिया।
एक ओर जनता के हक की लड़ाई, दूसरी ओर “रथ-रोक” की लड़ाई।
राजनीति में फ्रंट सीट की लड़ाई कभी खत्म नहीं होती!
रथ पर जगह कम, महत्वाकांक्षा अधिक!
कन्हैया कुमार का रथ से रोका जाना एक छोटी घटना लग सकती है, लेकिन राजनीति में इशारे ही काफी होते हैं।
कभी ‘आजादी’ की गूंज देने वाला चेहरा अब कांग्रेस के भीतर खुद को असहज पा रहा है।
बिहार बंद से जो तस्वीरें बाहर आईं, उनमें जनता सड़कों पर थी — और नेता रथ पर। लेकिन रथ के बाहर रह गया एक चेहरा — और उसने विपक्ष की एकता में एक छोटा सा सवाल खड़ा कर दिया।